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कम्प्यूटर का इतिहास – History of Computer

आवश्यकता ( Need ) आविष्कार की जननी है , आज कम्प्यूटर इसी आवश्यकता का परिणाम है । मनुष्य विकास के मार्ग में प्राचीन काल से ही प्रयत्नरत रहा है । इसी का नतीजा है आज का कम्प्यूटर । कम्प्यूटर के विकास क्रम को तीन भागों में बांटा जा सकता है ।

हालांकि आधुनिक कम्प्यूटरों को अस्तित्व में आये हुए मुश्किल से 50 वर्ष ही हुए हैं , लेकिन उनके विकास का इतिहास बहुत पुराना है । कम्प्यूटर का जो रूप हम आजकल देख रहे हैं , वह हजारों वर्षों की वैज्ञानिक खोजों और चिंतन का फल है । पुराने समय में मनुष्य अपने पशुओं की गणना अपने आसपास की वस्तुओं जैसे पत्थर , हड्डियाँ , उँगलियों आदि को सहायता से किया करता था । धीरे – धीरे उसने गणनायें ; जैसे जोड़ना , घटाना , गुणा करना आदि सीखा । गणनाओं की मात्रा और जटिलता बढ़ने पर गणना में सहायक यंत्रों की आवश्यकता अनुभव की जाने लगी । इसके परिणामस्वरूप सबसे पहले गिनतारा ( Abacus ) अस्तित्व में आया और बाद में भी कई यंत्रों का निर्माण किया गया ।

कम्प्यूटर के विकास क्रम को तीन भागो में बांटा जा सकता है

डार्क ऐज ( Dark Age ) (5000BC-1890AD)

इस समय के सभी कम्प्यूटर Electro – mechanical थे । डार्क ऐज का इतिहास अबेकस ( Abacus ) से शुरू हुआ । इससे पहले मनुष्य गणना के लिए छोटे – छोटे पत्थर या धातुओं पर खरोंच करके गणना का कार्य करते थे ।

गिनतारा ( Abacus )

यह सबसे पहला और सबसे सरल यंत्र है , जिसका प्रयोग गणना करने में सहायता के लिए किया गया था । इसका इतिहास 5000 वर्ष से भी ज्यादा पुराना है । ईसा पूर्व 3500 से 3000 में चीन में इसका व्यापक उपयोग होने के प्रमाण प्राप्त हुए हैं । आश्चर्य की बात यह है कि गिनतारा आजकल भी अपने प्रारम्भिक रूप में ही रूस , चीन , जापान , पूर्वी एशिया के देशों तथा भारत में भी कुछ स्कूलों में प्रयोग किया जाता है ।

गिनतारा लकड़ी का एक आयताकार ढाँचा होता है , जिसमें 8 या 10 क्षैतिज ( Horizontal ) छड़ें होती हैं । प्रत्येक छड़ में 6 दाने या मनके होते हैं , जिन्हें एक अन्य लम्बवत् छड़ द्वारा इस प्रकार विभाजित किया जाता है कि एक और 5 मनके हो तथा दूसरी और केवल एक मनका हो । अकेला मनका संख्या 5 को व्यक्त करता है तथा दूसरी ओर का प्रत्येक मनका संख्या को व्यक्त करता है मनकों को छड़ों पर विभाजक छड़ की और अथवा उससे दूर खिसका कर गणनाएँ की जाती हैं कहा जाता है कि गिनतारे का नियमित उपयोग करने वाले व्यक्ति आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक डेस्क कैल्कुलेटर से भी ज्यादा शीघ्र गणनाएँ कर लेते हैं ।

एनालॉग मशीन एवं नैपियर बोन्स Analog Machine and Napier’s Bones )

अबेकस के बाद सन् 1617 में स्कॉटलैंड ( Scotland ) के एक गणितज्ञ जॉन नैपियर ( John Napier ) ने हड्डियों की छड़ों का प्रयोग कर एक ऐसी मशीन ( Device ) का निर्माण किया जो गुणा ( Multiplication ) का कार्य भी कर सकती थी । इसलिए इस मशीन ( Device ) का नाम नैपियर बोन्स Napier Bones ) रखा गया ।

स्लाइड रूल (slide rule)

सन् 1600 के दशक में विलियम आट्रेड (William Oughtred) एवं अन्य लोगों ने जॉन नेपियर द्वारा आविष्कृत लघुगणक के आधार पर स्लाइड रूल का विकास किया।

ब्लेज पास्कल का यांत्रिक कैल्कुलेटर ( Mechanical Calculator of Blaise Pascal )

सन् 1642 में ब्लेज पास्कल ( Blaise Pascal ) ने पहली यांत्रिक मशीन ( Mechanical Machine ) बनाई जो जोड़ व बाकी का कार्य कर सकती थी । पास्कल ने 18 वर्ष की उम्र में अपने पिता को Tax Calculation की मदद के लिए इस मशीन को बनाया ।

लेबनिज का यांत्रिक कैल्कुलेटर ( Mechanical Calculator of Leibnitz )

जर्मन गणितज्ञ लेबनिज ने सन् 1671 में पास्कल के कैल्कुलेटर में कई सुधार करके एक ऐसी जटिल मशीन का निर्माण किया जो जोड़ने तथा घटाने के साथ ही गुणा करने तथा भाग देने में भी समर्थ थी । इस यंत्र से गणनाएँ करने की गति बहुत तेज हो गयी । इस मशीन का व्यापक पैमाने पर उत्पादन किया गया । अभी भी अनेक स्थानों पर इससे मिलती – जुलती मशीनों का उपयोग किया जाता है ।

बैबेज का डिफरेंस इंजन ( Difference Engine of Babbage )

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के गणित के प्रोफेसर चार्ल्स बैबेज ( 1792-1871 ) को आधुनिक कम्प्यूटरों का जनक ( पिता ) कहा जाता है । गणित के क्षेत्र में उनका पहला महत्वपूर्ण योगदान था— एक ऐसा यंत्र बनाना , जो विभिन्न बीजगणितीय फलनों का मान दशमलव के 20 स्थानों तक शुद्धतापूर्वक ज्ञात कर सकता था । इस मशीन को डिफरेंस इंजन कहा जाता था , क्योंकि यह इस सिद्धान्त के आधार पर बनायी गयी थी कि किसी बीजगणितीय बहुघातीय फलन ( Polynomial ) में पास – पास के दो मानों का अन्तर सदा नियत रहता है ।

बैबेज का ऐनालिटिकल इंजन ( Analytical Engine of Babbage )

अपने डिफरेंस इंजन की सफलता और उपयोगिता से प्रेरित होकर चार्ल्स बैबेज ने एक ऐसे यंत्र की पूरी रूपरेखा ( Design ) तैयार की जो आजकल के कम्प्यूटरों से आश्चर्यजनक समानता रखती है । इस मशीन को ‘ ऐनालिटिकल इंजन ‘ कहा गया । इस प्रस्तावित मशीन के पाँच प्रमुख भाग थे – इनपुट इकाई , स्ओर , मिल , कंट्रोल तथा आउटपुट इकाई । इस मशीन की डिजाइन अपने आप में सम्पूर्ण थी । इसमें न केवल सभी गणितीय क्रियाओं को करने की क्षमता थी , बल्कि आँकड़ों को भंडारित करने का विचार भी इसी में पहली बार प्रस्तुत किया गया था ।

दुर्भाग्य से भारी मात्रा में धन खर्च करने के बाद भी यह मशीन कभी पूरी नहीं हो सकी , क्योंकि यह कार्य केवल यांत्रिक ( Mechanical ) साधनों से करना सम्भव नहीं है और उस समय आजकल जैसी तकनीकें उपलब्ध नहीं थीं । चार्ल्स बैबेज का चिंतन अपने समय से लगभग एक शताब्दी आगे था और भले ही वे अपने प्रयासों में असफल रहे , परन्तु उनके कार्य के महत्व को नकारा नहीं जा सकता । उनकी प्रस्तावित मशीन को आधुनिक कम्प्यूटरों का आदि पुरुष माना जाता है और चार्ल्स बैबेज को ‘ कम्प्यूटरों का जनक ‘ ( Father of Computers ) कहा जाता है ।

मिडिल ऐज ( Middle Age 1890-1944 )

हर्मन होलेरिथ की टेबुलर मशीन ( Tabular Machine of Herman Hollerith )

कम्प्यूटर के विकास में USA के वैज्ञानिक डॉ . हर्मन होलेरिथ ( Dr. Herman Hollerith ) का बहुत योगदान रहा । 1880 की जनगणना ( USA में ) में यह जनगणना विभाग में कार्यरत थे एवं बहुत ही कम समय में ( लगभग 3 वर्षों में ) इस मशीन के उपयोग से इन्होंने इस कार्य को सम्पन्न कराया ।

होलेरिथ की इस मशीन में पंच कार्ड का उपयोग किया जाता था उन्होंने अपने कोड ( Code ) विकसित किए थे जिन्हें होलेरिथ कोड कहा गया । इन कोड के द्वारा पंच कार्ड में सूचना का संग्रह करना सम्भव हो पाया । पंच कार्ड में जो छेद होते हैं वे 1 को प्रदर्शित करते हैं व जहां छेद नहीं होते हैं वह 0 को प्रदर्शित करते हैं । इस मशीन में डाटा को भविष्य के लिए संग्रहित करना सम्भव हो सका । होलेरिथ ने 1896 में एक कम्पनी निर्मित की और यह वह मशीन बेचने लगा । 1924 में यह कम्पनी एक अन्य कम्पनी के साथ विलय होकर IBM ( International Business Machine Corporation ) के नाम से जानी जाने लगी । यह पहली यांत्रिक मशीन थी जो बिजली से चलती थी

एटानासॉफ – बेरी कम्प्यूटर ( Atanasoff – Berry Computer )

सन् 1939 में डॉ . जॉन एटानासॉफ व उनके छात्र ई – बेरी ने USA के एक विश्वविद्यालय में जटिल गणनाओं के लिए कम्प्यूटर बनाने का प्रयास किया । सन् 1942 में इन्होंने एक कार्यशील Model तैयार कर लिया जिसमें मुख्य वैक्यूम ट्यूब उपकरण का उपयोग किया गया था । यह ABC कम्प्यूटर बाइनरी नम्बर सिस्टम पर आधारित था तथा संग्रह इकाई व अंकगणित लॉजिक इकाई इसकी मुख्य विशेषताएं थी अर्थात् एटानासॉफ ने प्रथम इलेक्ट्रॉनिक डिजिटल कम्प्यूटर का आविष्कार किया ।

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